कभी कभी खुद को समझाया कर ।
कोई नहीं अपना तो भी खुशी मनाया कर।
कभी कभी खुद को समझाया कर।
स्वयं चले ही पथ कटते है ।
अपने बल से ही नग हटते है ।
कर पर मत सिर टिकाया कर।
कभी कभी खुद को समझाया कर ।
साथ नहीं जिसका कोई है।
तो भी राह साथ मे चलता है ।
किसे मानता अपना मूरख।
वह पग पग पर छलता है ।
मत घबराया कर , मत चिल्लाया कर।
हाथ साधकर बाधाओ से पार लगाया कर।
कभी कभी खुद को समझाया कर ।
जन्म मृत्यु में रहे अकेले,
हमने देखें खुद ही झेले।
स्वारथ बिन पूछे नहीं कोई ।
बात कहूँ सच्ची साफगोई।
खुद को कर मजबूत,
न मजबूर बनाया कर।
कभी कभी खुद समझाया कर ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र