कभी आप अपने ही समाज से ऊपर उठकर देखिए।
कभी आप अपने ही समाज से ऊपर उठकर देखिए।
तो पता चलेगा की आपके विरोधी कितने है।
कभी आप अपने तेवर में जमकर आइए।
तो पता चलेगा की शोर कितना है।
कितनी आंखो में रोशनी की जगह।
क्रोध की चिंगारी होगी।
तुम्हे गिराने में न जाने।
कितने लोगो की मिलकर तैयारी होगी।
रचा जाएगा षड्यंत्र तुझे मारने का भी।
पर मजा तो तब आएगा ।
जब उनकी हर बाजी उल्टी होगी।
महफिल ज़मी है अप्सराओं से।
मतलब यह नहीं की तुम खूबसूरत कितनी हो।
फर्क तो बस इससे पड़ेगा।
की उन महफिल में तुम्हारे दीवाने कितने है।
कौन चाहता है की तू इतिहास रचे।
तेरे खिलाफ तो यहां हर कोई साजिश रचते हैं।
दुनिया की छोड़ सबसे पहले तो तेरे पड़ोसी ही जलते है।
विरोध का स्वर तो पहले गूंजता है अपने ही आशियाने में।
नही तो कौन क्या जाने क्या चल रहा है ज़माने में।
कहने को तो तेरे हजार दोस्त है।
पर मायने तो यह रखता है।
तेरे मुश्किल हालात में साथ खड़े कितने है।
भ्रम में जीना छोड़ दो।
हकीकत से नाता जोड़ लो।
इस बेगानी दुनिया में।
बिना स्वार्थ के दीवाने अब्दुल्ला कितने है।
किनारे से क्या देखता है समंदर को।
समंदर में उतर कर देख।
उसके लहरों में ताकत कितनी है।
जल जाने दो उसे पूरे तपिश में।
शांत होने पर पता चलता है ।
उसमे ज्वालाओं की गर्मी कितनी है।
होता है सामना जब इस भौतिक दुनिया के।
लाख दुखों से तो पता चलता है।
की उसमे जीने की चाहत कितनी है।
तोड़ दे जो किसी का गुरूर।
तो पता चलता है उसमे स्वाभिमान कितना है।
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने वालो को छोड़ो।
असली प्रमाण तो जनता से मिलता है।
की किसी का आत्मसम्मान कितना है।
मांगो कभी किसी से तो एक बार।
तो उससे पता चलता है की वो कद्रदान कितना है।
बार बार मांगना तो काम है भिखारियों का।
जो मदद के लिए रहे सदा ही खड़ा।
तो पता चलता है की वो महान कितना है।
RJ Anand Prajapati