कब बदलेंगे ढंग !!
जैसे ही मैंने कहे, सत्य भरे दो बोल !
झपटे झूठे भेड़िये, अपनी बाहें खोल !!
चूहे बनकर जी रहे, हम बिल्ली के संग !
कब बदलेगी सोच ये, कब बदलेंगे ढंग !!
जब भी चुनती बिल्लियां, बन्दर को सरदार !
हिस्सा उनका चाटता, उनका करे शिकार !!
तन-मन जिनके वासना, जीवन है अश्लील !
अपने पाक चरित्र की, देते दिखे दलील !!