कब तुम?
जरा बताना तो,
कब बैठे थे ? चुपचाप,अकेले,
खुद से बाते करने को,
शांत रात में छत पर लेटे,
गुमसुम तारे गिनने को,
कब तुम अंतिम बार हंसे थे?
खुलकर बेतुक बातो पर,
कब तुम थोड़ा सा चहके थे?
झूठ- मूठ के वादों पर ,
कब तुम थोड़ा सा ठिठके थे?
भाग दौड़ भरे जीवन में
कब अपना चेहरा देखा था ?
ध्यान से घर के आंगन में,
और निठल्ले होकर बैठे
कब तुम जामुन खाए थे?
उसी पुराने बागीचे में
बचपन बाद क्या आए थे?