कब तक
कब तक
हम ढोंग करते रहेंगे
स्वयं को मर्यादित साबित करने का
हर रोज हर पल
हम मर्यादा के खोल में
अमर्यादित कार्यों को अंजाम देते हैं
कभी सरे आम
कभी अंधेरों में
तो कभी रिश्तों की आढ़ में
हम
मर्यादा की हदों का उल्लंघन करते हैं
वर्तमान सभ्यता ने
मर्यादा की समस्त वर्जनाओं को
तोड़ डाला है
कभी सर पर चुन्नी
लाज का प्रतीक मानी जाती थी
तन प्रदर्शन को भोंडापन कहा जाता था
बड़ों का मान
सभ्य एवं सुसंस्कृत होने की निशानी थी
आज सब कुछ उलट हो गया है
तन का प्रदर्शन,बड़ों की अवहेलना
अमर्यादित प्रेम प्रदर्शन
क्या यही है वर्तमान की देन
आज की पीढ़ी को
आने वाले कल की कल्पना मात्र से
अजीब से सिहरन होती है
कहीं हम मर्यादा के खोल में
अमर्यादित आदि युग की तरफ़ तो नहीं जा रहे
ऐसे उच्छृंखल जीवन को रोकना होगा
हमें मर्यादित करना होगा
जीवन क्रम को
आने वाले कल के लिए
सुशील सरना