कब तक पीर छुपाएं सैनिक
गीतिका
कब तक पीर छुपाएं सैनिक, कब तक रक्त गिरायें।
विलखाती व्याकुल घाटी की, कब तक व्यथा छुपायें।
निकल रहे बरसाती मेंढक, निज औकात बताकर।
दूध- मुखी विष-कुंभों को हम, कितना अब समझायें।
शरण पा रहे फनधर कितने, घर में बिल खुदवाकर।
बार बार डसते रहते हम, क्यों ना फन कुचलायें।
बोल रहे दुश्मन की बोली, घात लगाये बैठे।
रक्षा में तत्पर सैनिक पर ,क्यों पत्थर बरसायें।
जो अक्सर देते थे’ सफाई , उठा आवरण मुख से।
मानवता के वैरी के, मरने पर शोक मनायें।
जहाँ राष्ट्र ध्वज अपमानित हो, देश भक्त को गाली।
वहाँ राष्ट्र के जन साधारण, क्यों ना शस्त्र उठायें।
जिस दिन मरते हैं आतंकी, शौर्य दिवस वो होगा।
क्यों न भारती हो हर्षित, फिर उत्सव यहाँ मनायें।
आतंकी की मृत्यु ‘इषुप्रिय’, काला दिवस वहाँ पर।
ऐसे काले दिवस भले ही, निसदिन आते जायें।
ओज तेज अतिबल से मण्डित, राष्ट्र भक्त सेनानी।
गद्दारों की बलि चढकर वे, कब तक प्राण गँवायें।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)