कब्र है-अँधेरा है
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प्रभु,मुझे मेरे कब्र से उठा लो,यहाँ अँधेरा बहुत घना है।
उजाले के लिए दीया जलाना,यहाँ मेरे लिए तो मना है।
आश्वासनों के माटी तले मेरा सभी हसरत दफन है प्रभु,
कुछ दूसरों ने कुछ मैंने स्वयं गढ़े,यह लौह-चना है प्रभु।
मरीचिकाओं ने बहुत लुभाया,दौड़ा-दौड़ा बहुत ही थकाया।
पसीने ने बुझाया नहीं प्यास,लहू पीना क्यों?मना है प्रभु।
प्यास की पराकाष्ठा तक उठाकर मुझे, ललचाते हैं लोग।
व मेरी ओर जो उछालते हैं वह तो,बस झुनझुना है प्रभु।
मुझे मेरे कब्र से उठा लो,यहाँ अँधेरा बहुत घना है, प्रभु।
मृत्यु से जीतने की ‘ठान’ है अत: मेरा हर रौशनी फना है।
विरासत श्रम था इसलिए होता रहा भाग मेरा हर गुना है।
इतने पत्थर तोड़े हमने कि पृथ्वी लपेट देता बिछाकर इसे।
पुलक और प्रयास भरने वाली मुस्कान अभी तो अनमना है।
खुले नभ के तले ही नई पीढ़ी जनने का दर्द भोगना है उसे।
पुत्र हुआ तो सहज पुत्री हो तो असहज जीवन सामने तना है।
जीवन जीने की चाह तो अदम्य है जीने के तरीके से घृणा है।
संतुष्टिदायक कथा कहने हैं,चाहे अन्दर मेरे भरा तीव्र तृष्णा है।
सूरज के जन्म का इतिहास फुर्सत से देखने का करूंगा यत्न।
स्वयं के जन्म का जो भरा है मुझमें जो वह अग्नि-कृष्णा है।
नक्षत्रों से कोई वैर न था शनि,राहू पृथ्वी का सगा है गैर नहीं।
अभाव की परिधि में बांधने लिखा है, रखने को मेरा खैर नहीं।
प्रभु,शिकायत तो भेजा और किया तुमसे भी,समाधिस्थ रहे हो।
जब–जब संग्राम को शस्त्र हमने उठाया, क्यों?मध्यस्थ रहे हो।
प्रभु, मुझे अब मेरे कब्र से उठा लो, यहाँ अँधेरा बहुत घना है।
भोगने को तुम्हारा नीयत और नियति माँओं ने बहुत जना है।
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