कब्र में खाली हाथ जाते हैं
उम्र भर मालो ज़र कमाते हैं
क़ब्र में खाली हाथ जाते हैं ।।
लोग खुद पर सितम ये ढाते हैं
धुन में जीने की मारे जाते हैं ।।
एक ही घर है एक आँगन है
चूल्हे फिर क्यू अलग जलाते हैं?
दिल की बाते जो करते हैं अक्सर
दोस्ती अक़्ल से निभाते हैं ।।
काटते जब हैं हम वृक्षों को
कहर क़ुदरत के हम पे आते हैं ।।
पाक है ज़िन्दगी “भवि” उनकी
शीश जो देश पर चढ़ाते हैं ।।
*****शुचि(भवि)*****