कब्रस्तान के किनारे (कहानी)
नबम्वर का महीना था। दीपावली को निकले लगभग सप्ताह भर बीत चुका था इसलिए कुछ ठण्ड भी पडने लगी थी यहि कारण था, कि राजीव उन दिनों अपने घर से कम ही निकलता था। उस दिन शाम के करीब 7 बजे का समय रहा होगा। शाम भी लगभग ढल ही चुकी थी, रात्रि का अंधेरा हम सब को अपने आगोश में लेने को तैयार था कुछ-कुछ अंधियारा होने के कारण नगर पालिका की पीली स्ट्रीट लाइटें भी जल चुकी थीं।
राजीव उसी वक्त अपने मित्र आकाश से मिलकर उसके घर से आ रहा था राजीव और आकाश कक्षा 7 में एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढते थे। दिसम्बर माह में उनकी अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं शुरू होने वाली थी। इसलिए कुछ नोट्स लेने थे उसको। राजीव और आकाश दोनों के घरों के बीच करीब एक-डेढ़ किलो मीटर दूरी थी इस दूरी के बीच एक कब्रस्तान भी पडता था राजीव उस दिन उस कब्रस्तान के पास से गुजर ही रहा था कि उसे किसी के किन्हाने की आवाज सुनाई दी जैसे कोई व्यक्ति दर्द से करहा रहा हो, राजीव को इन आवाजों को सुनकर कुछ अजीव सा लगा, उसे कुछ डर सा लगा, लेकिन फिर उसने यह जानने कर प्रयास किया कि आखिर ये आवाजें आ कहां से रही हैं। राजीव ने अपनी साईकिल रोकी और इधर-उधर देखने लगा। तो उसने देखा कि उस कब्रस्तान की दीवार के किनारे लगी नगर पालिका वाली पीली स्ट्रीट लाइट के खम्बे के नीचे एक वृद्ध व्यक्ति को बैठा हुआ पाया। शाम होने की वजह से ठण्ड बढने लगी थी हल्का सा कोहरा सा भी छाने लगा था, जिसके कारण उस वृद्ध का बूढ़ा शरीर ठण्ड से ठिठुर रहा था। उसके पास ओढ़ने के लिए एक कम्बल तो था लेकिन वह फिर भी ठण्ड से ठिठुर रहा था, क्योकि वह कम्बल उस वृद्ध की ठिठूरन को दूर नही कर पा रहा था। राजीव ने जब यह दृश्य को अपनी आंखों से देखा तो वह खुद को उस वृद्ध के पास जाने से रोक नही पाया और जब वह उस वृद्ध के पास गया और उनके नजदीक जाकर बैठ गया। राजीव को अपने अधिक नजदीक आता देखकर वह वृद्ध कुछ घबरा सा गया, लेकिन जब राजीव ने उनसे प्रेमपूर्वक पूछा, ‘‘बाबा आप इस तरह यहां इतनी ठण्ड में क्यों ठिठुर रहें हो और आपके परिवार वाले कहां हैं।’’
राजीव के इतने प्रेमपूर्वक पूछने पर वह वृद्ध कुछ बोला तो नहीं लेकिन अचानक उनकी आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ पडा, राजीव उस वृद्ध की उस मनोस्थिति को देखकर कुछ समझ नही पा रहा था कि इस स्थिति परिस्थिति में वह क्या करे, लेकिन उसने पुनः उस वृद्ध को सान्तुना देते हुये कुछ अपनत्व का व्यवहार अपनाते हुये पूछा, ‘‘बाबा आप इतनी ठण्ड में यहां क्या कर रहे हो, आपका घर कहां है आपके परिवार वाले कहां हैं, इस तरह ठण्ड से ठिठुर कर तो आप बीमार हो जाओंगे।
वृद्ध ने अपने परिवार के बारे में तो कुछ नहीं बताया बस शान्त ही रहना उचित समझा। शायद उसके पुत्र ने उनको घर से निकाल दिया था।
लेकिन राजीव के इस अपनत्व पूर्ण व्यवहार और प्रेमपूर्वक पूछने पर उस वृद्ध ने अपनी दबी और कांपती हुयी आवाज मे कुछ कहने का प्रयास किया और बोले, ‘‘बेटा ! तुम कौन हो !
राजीव, ‘‘ बाबा मेरा नाम राजीव है मैं यही पास ही रहता हूँ, लेकिन आप यहां कैसे ।
वृद्ध, ‘‘हम जैसे लोगो की दुनिया में कोई जगह नहीं है कोई हमारी खबर नही लेता, मै पिछले दिनों से भूखा कई रोज से मैने कुछ नहीं खाया है।
यह सुनकर राजीव का हृदय करूणा से भर गया, और राजीव की जेब में ज्यादा कुछ पैसे तो नही थे लेकिन उसी सुबह राजीव ने अपने पिता जी से पौकेट मनी के लिए कुछ रूपये लिए थे यही कोई चालीस-पचास रूपये रहें होंगे। राजीव ने उन पैसों से पास में ही खड़े खाने के ढ़ेले से खाने के लिये भोजन खरीदा और उस वृद्ध को लाकर खाने को दे दिया, वृद्ध ने खाने को देखा और एक बार राजीव की ओर देखा और बोले, ‘‘बेटा ! तुमने मेरी खबर ली, मेरे लिए इतना ही बहुत है लेकिन मै यह खाना नही खा सकता।
उस वृद्ध की इस बात से राजीव कुछ मायूस सा हुआ लेकिन राजीव ने जब स्नेह के साथ कहा, ‘‘बाबा! आप मुझे बेटा भी कहते हो और मेरी थोड़ी सी बात भी नही मान रहे हो, आप तो मेरे दादू की तरह हो। प्लीज! खा लीजिए न।
राजीव के बार-बार आग्रह ने वृद्ध खाना खा लिया और खाना खाने के बाद उस वृद्ध ने राजीव को अपने सीने से लगा लिया, और उसका माथा चूमा और बोले, ‘‘बेटा! सदा सुखी रहो।’’
राजीव ने देखा की खाना खाने के बाद उस वृद्ध की आंखों में चमक सी आ गयी थी। राजीव अपने जीवन में घटी घटना से कुछ खुश भी था और कुछ मायूस भी था, क्योकि जब राजीव ने उस वृद्ध से उनके परिवार के बारे में पूछा तो उनके जबाब में उसे खामोशी और आंसूओं के अलावा कुछ नहीं मिला, राजीव का हृदय उस दिन कचोट सा गया था और वहां से सीधे अपने घर गया और जाकर अपने मम्मी और पापा के पास जाकर उनके सीने लग गया। जब राजीव के पिता ने राजीव से पूछा, ‘‘ राजीव……… बेटा क्या हुआ।
तब राजीव ने अपने साथ घटित उस घटना के बारे मे अपने मम्मी-पापा को बताया, तो उसके मम्मी पापा दोनो ने उसे शाबाशी दी और कहा कि आज हमें यकीन हो गया कि हमारा बुढापा सुरक्षित है क्योकि जब हम बूढे हो जायेंगे तो हमारा बेटा हमारे साथ होगा।
राजीव के मम्मी-पापा के विस्वास से राजीव के चहरे पर मुस्कान ला दी और वह अपने जीवन में घटी उस घटना से काफी खुश हुआ क्योकि उस दिन उसके कारण किसी वृद्ध को जीने के लिए मिल गयी थी जीने की कुछ और सांसे उस कब्रस्तान के किनारे।
लेखक- मोहित शर्मा ‘‘स्वतन्त्र गंगाधर’’
दिनांक 13.08.2016