कबूल असूल और वसूल
कबूल असूल और वसूल
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असूल हो जाते है वसूल
जब करते हम असूल कबूल
हिल जाएं गूढ़ी जड़, वजूद
जब टूटने लगें ये असूल
दुनियादारी के तत्व मूल
जिन्दगी के बनाए असूल
होते सफलता की कुंजी
शेष सिद्ध होते हैं फिजूल
निश्चित करते जीवन पूंजी
आमजन हों या अफलातून
जिन्दा रखते मान सम्मान
बनाते स्वाभिमानी असूल
घरपरिवार समाज में साख
प्रतिष्ठित पद दिलाएं रूल
जवानी में बढ़ जाए गरूर
शक्ति सृजित मंढ़े हो असूल
सुखविंद्र भी तो है मगरूर
तोड़े नहीं निभाए असूल
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)