कन्या भ्रूण कि आवाज
रो रही थी एक भ्रूण कचरे में,
पूछने पर पता चला
फेंक दिया मां ने उसको जन्म से पहले।
देखो यह आधूनिक समाज,
रो -रो वह कह रही थी,
पूछ रही , आखिर मेरा गुनाह करता था?
क्या मैं पुत्री थी , इसलिए
क्यो मुझे वसंत देखने का ना मिला मोका,
क्या मैं बोझ हूं तुम पर??
देखो इस समाज को समझाओं कोई,
उन्हें बेटियों के महत्त्व बताओं कोई
काश! मेरी मां मुझे जीने देती
तो मैं”कल्पना” बन आकाश में उड़ जाती
मैं “लता” बन संगीत की दुनिया में खो जाती,
मैं” देर्गा” बन सहरद कि रक्षा करती
काश मेरे परिवार मुझे जीने देते
हैं भारत के वासियों, वह अनुरोध है इतना मेरा
ना मारो तुम बेटियों को,
क्योंकि,
उनके बिना घर अधुरा