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10 Oct 2021 · 2 min read

कन्या पूजन

नमन मंच
दिन रविवार
विधा गद्य
विषय कन्या पूजन का औचित्य
आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
आज कन्या पूजन एक विसंगति बन कर रह गया है।कोई इसे सार्थक,तार्किक मानता है तो कोई रुढ़ि।
परंतु हमारे भारतीय पर्वों का अलग महत्व.है और बिना प्रकृति के संसर्ग के पर्व अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ फलीभूत नहीं होते।
स्त्री और पुरुष जगत के अभिन्न अंग हैं। एक के बिना प्रकृति का विकास संभव नहीं तो निर्माण भी असंभव है।
एक समय था जब पुरुष और प्रकृति के बीच संतुलन और अनुकूलन बना हुआ था । आज यह बिगड़ा हुआ है। इसमें लिंग भेद ,घटता बालिका अनुपात आदि कारण हैं। स्त्री को प्रकृति रुप माना है और प्रकृति सदैव नवनिर्माण करती रहती है ।अगर प्रकृति अपना कार्य बंद कर दे तो हम भोजन पानी तो दूर साँसों के लिये भी तरस जायेंगे।
स्त्री भी संतति को जन्म देकर सृष्टि को चलाने में सहायक है ।उसे संस्कार देकर निर्माण योग्य बनाती है , जहाँ संतान को माँ से ममता ,दया ,अनुकरण ,परसम्मान आदि लचीले गुण मिलते हैं वहीं पुरुष पिता से नेतृत्व ,विपरीतता में संघर्ष जैसे गुण।
धार्मिक मान्यता में स्त्री सदैव पूज्यनीय रही है। और पितृसत्तात्मक व्यवस्था में बहुत जरुरी था कि स्त्री को सम्मान देना। अगर निरंतर उसे अपमानित किया जाता रहा तो वह विध्वंसिनी भी हो सकती है। निःसंदेह एक महत्वपूर्ण कारक है स्त्री ।अतः विभिन्न अवसरों पर स्त्री को भोग्या नहीं पूज्या मान उन्हें सम्मान दिया जाता रहा है जिससे पारिवारिक ,सामाजिक व्यवस्था सुचारू चलती रहे।
परिवर्तित होते जाते परिवेश में विभिन्न धार्मिक मान्यताओं,आस्थाओं ,खान पान,पूजन पद्धति आदि में बदलाव आया है। अतः कन्या पूजन पर भी प्रश्न चिह्न लगने.लगे हैं।
आज पुनः आवश्यक है स्त्री पर बढ़ते जा रहे अत्याचारों को रोकने के लिए स्त्री सम्मान हो। पूजन और धार्मिक क्रियाओं हेतु आवश्यक है कि मन की शुद्धि,वचन की शुद्धि,काया की शुद्धि ,भूमि (चौका,रसोई)की शुद्धि,भोज्य पदार्थ की शुद्धि और इनका महत्व समझने की। और शिक्षित युवा इन्हें समय ,खाद्य पदार्थ के साथ आर्थिक हानि ही समझता है।
अतः हमें अपने मूल्यों हेतु पुनः पर्वों का महत्व समझना होगा।
नवदेवी के अलग नव रूप हैं और यहाँ अन्य रचनाकारों द्वारा पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है ।अतः आवश्यक है पहले कन्या पूजन का महत्व समझें। शायद तब कन्या भ्रूण हत्या, बालिका अपहरण ,बलात्कार जैसी घटनायें समाप्त हो जायें। आज कन्या पूजन धार्मिक परंपरा ही नहीं बल्कि सामाजिक शांति,विकास हेतु बहुत महत्वपूर्ण और आवश्यक है। अतः आज के परिप्रेक्ष्य में कन्या पूजन का महत्व और बढ़ जाता है।
कहते हैं
जिस आँगन में बिटिया न खेली
सारी खुशियाँ रह गयीं अधूरी।
स्वप्रेरित विचार
मनोरमा जैन पाखी

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 238 Views
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