कन्यादान लिखना भी कहानी हो गई
कहने को एक बात बदगुमानी हो गई
कन्यादान लिखना भी कहानी हो गई
कन्यादान लिखना………
शादी का उत्सव था हमको बुलाया था
कन्यादान लिखने चुन कर लगाया था
उसमें पहली बार एक परेशानी हो गई
कन्यादान लिखना………
बहुत मेल जोल था और भीड़ थी बड़ी
कन्यादान लिखवाने जो पास थी खड़ी
साथी गए निकल उनकी रवानी हो गई
कन्यादान लिखना………..
साथ बैठे चाचा को फिर साथ ले लिया
सोचकर अपना ही है सहयोग ले लिया
जिम्मेदारी आखिर को निभानी हो गई
कन्यादान लिखना………….
दिन भर रहे व्यस्त हम खाना भूल गए
जिम्मेदारी निभाई इस भ्रम में फूल गए
लिखते-लिखते भूल यूँ अंजानी हो गई
कन्यादान लिखना………..
थैला ले चाचा ने हमें फारिक कर दिया
रात भर लगी हिसाब बारिक कर दिया
शादी वालों को डायरी उठानी हो गई
कन्यादान लिखना…………
फोन करके बुलाया हमें सवाल ये हुए
करो विचार बताओ तो पैसे कहाँ गए
दिल भी था बेचैन बहुत हैरानी हो गई
कन्यादान लिखना…………
अपराध नहीं था हम अपराथी से लगे
निर्दोष थे परंतु हम फरियादी से लगे
धीरे-धीरे बात फिर यूँ तुफानी हो गई
कन्यादान लिखना………..
जैसे-तैसे बात को यूँ रफा-दफा किया
हंसने वाले हंसे और छेड़ा मजा लिया
दिल में थी कचोट ये मानहानी हो गई
कन्यादान लिखना………..
कड़वा है अनुभव ये सबको है ऐतबार
कन्यादान लिखने फिर बुलाए एक बार
नादान बुद्धी ‘विनोद’की सयानी हो गई
कन्यादान लिखना………..
( अनुभव ही सिखाता है )