कन्यादान क्यों और किसलिए [भाग ५]
सच कहती हूँ मेरे पापा ,
अब न कोई घर मेरा होगा ।
अब न किसी घर को मैं पापा ,
फिर से मेरा कह पाऊँगी।
आप कहते हो मेरे पापा,
अब नये संसार में जाओ तुम।
वहाँ जाकर तुम अपने,
नये रिश्तो को अपनाओं तुम।
सास को माँ ,ससुर को पिता
देवर को भाई बनाओ तुम,
और ननद को तुम बेटी ,
बहन के रूप में अपनाओं तुम।
मैं कहती हूँ मेरे पापा ,
अब न ऐसा हो पाएगा।
अब न पहले वाला रिशता,
फिर कभी बन पाएगा।
मैं वह पहले वाली बेटी,
अब न कभी बन पाऊँगी ।
न रिशतों में पहली वाली ,
मैं मिठास घोल पाऊँगी।
सास-ससुर को माँ, पिता,
मैं दिल से न मान पाऊँगी।
न देवर – ननद को भाई-बहन,
के जगह पर रख पाऊँगी ।
ठेस लगी जो दिल पर पापा,
उसे नही भर पाऊँगी।
फिर से रिश्तों पर विश्वास,
मैं नहीं कर पाऊँगी।
फिर से वो अल्हड़ सी बेटी,
मैं नहीं बन पाऊँगी।
जीने के लिए जिऊँगी,
पर भीतर-भीतर मर जाऊँगी।
फिर न पहले वाला मुस्कान,
मेरे होठों पर आएगा ।
न खिल-खिलाकर पहले सा,
मैं फिर कभी हँस पाऊँगी।
~अनामिका