कन्यादान क्यों और किसलिए [भाग३]
आप कहते थे मेरे पापा ,
मान है तू इस घर की।
ऐसा कुछ मत करना बेटी ,
जो अपमान हो कभी इस घर की।
आज उसी मान को पापा ,
आपने दान दे डाला ।
मैने तो रखी मान आपकी ,
क्या मेरा मान आपने रख पाया।
जब आप कहते हो मेरे पापा ,
आज तेरी विदाई है ।
इस घर से तेरी डोली जा रही ,
इस घर के लिए तू पराई है।
जब लोग कहते है मेरे पापा
लौट के इस घर न आना तुम ।
डोली में जा रही इस घर से
अर्थी में उस घर से जाना तुम ।
आप को क्या मालूम पापा,
ये शब्द मुझे कितने चुभते हैं।
इसकी चूभन की कसक
मरने पर भी नहीं मरते है।
~अनामिका