कनि कहियौ ने श्रीमान..!
कनि कहियौ ने श्रीमान..!
कनि कहियौ ने श्रीमान..!
जे सगरो लोक कहैये..
पिछड़ल अछि आइयो मिथिलाधाम,
चचरी के पूल कहैये ।
कनि तकियौ ने श्रीमान..!
जे मिथिला क’ लोक तकैये..
बड़ सुन्नरि छै सुशासनक काम,
पर मिथिला में पूल बहैये…
कनि खेलियौ ने श्रीमान..!
जे सगरो लोक खेलैये…
सभ जाइ छैथ ओलिंपिक धाम ,
मिथिला में लोकसभ तास खेलैये..
कनि घुमियौ ने श्रीमान..!
जे सगरो लोक घुमैये…
कनि घुमि आउ अयोध्याधाम,
रघुवरजी बाट जोहैये…
कनि गाबियौ ने श्रीमान..!
जे गामक लोक गाबैये…
एतअ घर घर गोसाओनि क’ गीत,
तइयो कियाऽ मिथिला क’ भाग फुटल अइ।
कनि हँसियौ ने श्रीमान..!
जे नगरक लोक हँसैये ,
चुनब जे नेता एहिठाम,
नेता में केवल जाति देखैये..!
मौलिक एवम स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २ ८/०९/२०२४ ,
आश्विन कृष्ण पक्ष,एकादशी,शनिवार
विक्रम संवत २०८१
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