” कनियाक प्रतीक्षा “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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मन मे आभास भेल ,
दिन मास बीति गेल ,
प्रियतम जे छथि दूर ,
अऔताह एहि बेर घुरि !!
सब दिन स्नान करि,
नव -नव परिधान करि,
झामर सन भेल छी,
परंच एहिबेर हमरा ,
मन मे आभास भेल
दिन मास बीति गेल ,
प्रियतम जे छथि दूर ,
अऔताह एहि बेर घुरि !!
काजर केर रंग बना ,
बोरि- बोरि नोर मे,
लिखी -लिखी पांति ,
थाकि सन गेल छी,
तइयो आभास भेल ,
दिन मास बीति गेल ,
प्रियतम जे छथि दूर ,
अऔताह एहि बेर घुरि !!
देहो निस्तेज भेल ,
यौवनक परिताप मे,
राशि -राशि रंग सखि,
होरी मे खेलाइत अछि ,
नव -नव परिधान मे,
हमरा त जीवन मे,
भरि देलहुं बिरहक नोर
कतबो दूर तकैत छी,
देखैत छी नहि छोर !!
मुदा आइ कुचरैइत अछि
बेर -बेर कौआ ,
हृदयक तार -तार ,
गुंजित भय बोलि रहल ,
तें मन मे आभास भेल ,
दिन मास बीति गेल ,
प्रियतम जे छथि दूर ,
अऔताह एहि बेर घुरि !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “