{{ कदम }}
अब अपने फतेह का परचम लहराना है
बहुत जी लिया पिंजरे में कैद हो के
अब अपना वजूद ज़माने को दिखाना है
नही हूँ मैं छुई मुई सी ये सब को बताना है,,,
क्यों पंख बांध के जीऊँगी मैं,दिए है
पंख मुझे जो उसे आसमान में फैलाना है
नही ज़रूरत मुझे किसी बैसाखी की
कदम मेरे मज़बूत है उसे मंज़िल को ओर
बढ़ाना है,,
अगर सृजन करने की शक्ति दी हैं कुदरत ने मुझे
तो भरण करने का हुनर भी मुझे आजमाना है
नही हूँ मैं कम किसी से ,क्यों दब कर जीऊ
आज अपनी किस्मत ,खुद के हाँथो से
लिखवाना है ,,