कदम बढ़े मदिरा पीने को मदिरालय द्वार खड़काया
कदम बढ़े मदिरा पीने को मदिरालय द्वार खड़काया
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तलब उठी पीने को हाला पहुँच गया मै मधुशाला।
तड़फ गया प्यासा मन मेरा पहुँच गया मै मधुशाला।
कदम बढ़े मदिरा पीने को मदिरालय द्वार खड़काया,
जलन बहुत छलनी था सीना पहुंच गया मै मधुशाला।
जला सड़ा मुखड़ा भार्या का विचार गया मन पगला,
खड़े – खड़े जैसे पथ भटका पहुँच गया मै मधुशाला।
खड़ा अकेला चिंता में डूबा मय पीने को मन व्याकुल,
नशा बड़ा ही मन को भाया पहुँच गया मै मधुशाला।
मिला बहाना जो देखा यार मिले जिसे जमाना बीता,
मिला पुराना साथी प्यारा पहुँच गया मै मधशाला।
चला डगर मनसीरत झट से रोक न पाया तन मन वो,
बड़ी सुहानी आई बेला पहुँच गया मै मधुशाला।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)