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2 Aug 2024 · 1 min read

“कदम्ब की महिमा”

महाकवि रसखान को सादर नमन करते हुए उनकी कालजयी रचना-
जो खग हौं तो बसेरो करौँ मिलि,
कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन..!
की लय-ताल से प्रेरित “कदम्ब की महिमा”विषय पर सृजित इस कवित्त मेँ हमने अन्त मेँ इन दो पँक्तियों को जस की तस रखा है।

कान्ह दियो कर्तब्य की सीख,
जु धीरज, धरमहिँ, धन्य सनातन।
तोड़ि दियो दुर्योधन दम्भ,
यहै सखि अमर है रीति पुरातन।।

लीन्हा न सुधि, भए बरस अनेक,
बिथा केहि भाँतहि, होइ निवारन।
गोपि न मानत, ऊधौ बात,
रटत बस बेगहिं श्याम निहारन।।

रूप सकल चहुँ ओर सुझात,
न और कछू मोहि बैन सुहावन।
छबि गिरधारि, बसी हिय माहिं,
दिवानि भई हुँ जु, प्रीति कै कारन।

बनत न “आशादास” कहात,
सुनावौं केहि जु है मनभावन।
गोकुल जनम जु होइ हमार,
करौँ नित दरसन भूमि जु पावन।

होहुँ जु धेनु, तु नन्द दुआर,
बँधौँ, जिमि, भाग हमार जुड़ावन।
जो खग हौं तो बसेरो करौँ मिलि,
कालिन्दी कूल कदम्ब की डारन..!

धेनु # गाय cow
भाग # भाग्य, luck

##————##————-##———

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 103 Views
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