कदमों में बिखर जाए।
छंद- रजनी आधारित गीतिका
मापनी- 2122 2122 2122 2
प्रदत्त पदांत- जाए
प्रदत्त समांत- अर
टूट कर हम आज कदमों में बिखर जाए।
दर तुम्हारा छोड़ कर बोलो किधर जाए।
ज़िन्दगी तेरे बिना मुश्किल हुआ जीना,
तुम कहो तो मौत के दरिया उतर जाए।
पड़ गई आदत तुम्हारी इस तरह देखो
दूरियों को सोच कर साँसें ठहर जाए।
बन गई हूँ हमसफ़र साथी तुम्हारी हूँ,
तुम चलोगे जिस डगर हम उस डगर जाए।
देह पावन हो गया देखो तुम्हें छूकर,
रूह में तुमको बसा कर हम सँवर जाए।
माँगती हूँ रात दिन इतना दुआओं में,
संग तेरे उम्र की घड़ियाँ गुजर जाए।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली