कथनी के वीर हों न, कर्मवीर चाहिए
कथनी के वीर हों न, कर्मवीर चाहिए ।
हर ओर अब सुधार की तस्वीर चाहिए ॥
बस खोखले वादों के न कंकाल दिखाओ,
नेताओं ! अब विकास का शरीर चाहिए ॥
हिन्दू हैं दूध, सिक्ख चीनी , मुस्लिम हैं चावल,
मिल जायँ एक – दूसरे में, खीर चाहिए ॥
जिन आँखों में हैवानियत का ख़ून तैरता,
उन आँखों में इंसानियत का नीर चाहिए ॥
हम नर हैं तो नर ही रहें मत जानवर बनें,
हर जीव के लिए हृदय में पीर चाहिए ॥
यह नेह बन न जाय सिर्फ़ देह का सौदा,
फिर राधा- कृष्ण और राँझा-हीर चाहिए ॥
जो काटती रहे गला अज्ञान का हरदम,
हर म्यान में अब ज्ञान की शमशीर चाहिए ॥
कहना न पड़े बेबसों की कीजिए मदद,
परहित को हरिक आदमी अधीर चाहिए ॥
धन के लिए न बेच दे ईमान ही कोई,
हर हाल में महफ़ूज़ अब ज़मीर चाहिए ॥
पैसे से हैं अगर धनी तो बात क्या बड़ी,
दिल से यहाँ हर आदमी अमीर चाहिए ॥
संतों के वेश में छुपे हैं ढोंगी अनगिनत,
अब संत तुलसी औलिया- फ़क़ीर चाहिए ॥
कोई कुरीति टिक न सके इस समाज में,
‘सौरभ’ यहाँ हर घर को इक कबीर चाहिए ॥
– सुरेश कुमार ‘सौरभ’