कथनी और करनी
पुरस्कृत कहानी,
शीर्षक- कथनी और करनी
साहित्यिक गोष्ठी में ,अचानक, यह विचार चर्चा का विषय बन गया ,कि, महापुरुषों के विचारों का उद्धरण हम सब अपने अनुजों को हमेशा देते हैं, किंतु, हम सब उनके विचारों को अपने जीवन में कम ही अनुकरण करते हैं। ऐसे विरले ही मिलते हैं, जिन्होंने महापुरुषों की स्वभाव को आदर्श मानकर अपने जीवन में अनुसरण किया हो।
गोष्ठी में उपस्थित समस्त लोगों ने बहुमत से इस विचार का समर्थन किया। अब विषय उठा ,ऐसा क्यों है?
अंबर जी ने कहा —
हमारे जीवन में राजनीति व कूटनीति का महत्वपूर्ण स्थान है ।अतः हम कष्ट साध्य महापुरुषों के आचरण अपने जीवन में उतारने से कतराते हैं ।यदि, आज संत कबीर होते,तो,
“काकर पाथर जोड़ के मस्जिद दई बनाये।
ता चढ मुल्ला बांग दे ,बहरा हुआ खुदाय ।”
कहने पर ,उनके विरुद्ध फतवा जारी हो सकता है। या फिर दंगे भड़क सकते हैं।
प्रवीण ने समर्थन करते हुए कहा,
मित्र, उस काल में संत अपनी पवित्र वाणी से समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वास को मिटाने हेतु आवाज उठाते थे ।उनका जीवन अत्यंत साधना एवं तपस्या से तपा हुआ था। उनके अनुभव अमूल्य थे। किंतु हम आज धन विस्तारक यंत्र द्वारा भजन, पूजन, नमाज आदि पढ़ते हैं। हमारी कथनी करनी में अंतर है क्यों ?
अंबर जी ने कहना शुरू किया -हमारे जीवन एवं पाठ्य पुस्तकों से, बचपन से ही महापुरुषों की जीवनी और उनकी शिक्षा गायब हो गई है ।हमारे बच्चे ,महापुरुषों जैसी प्रहलाद, नचिकेता ,गार्गी ,गुरु भक्त आरुणि, महाराणा प्रताप ,शिवाजी , गुरु नानक जी ,महावीर स्वामी, भगवान बुद्ध आदि महापुरुषों के संबंध में कुछ नहीं जानते ,तो, उन महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा कैसे ले सकते हैं?
प्रवीण -मित्र, माता-पिता द्वारा बचपन से ,महापुरुषों की शिक्षा पर अनुसरण करने की सीख देना ,एवम प्रशिक्षण देना चाहिये।जिससे बच्चे इन शिक्षाओं को आत्मसात कर सकें और उन पर अमल कर सकें ।
अंबर जी -मित्र,अभिभावकों को इन बच्चों में सदगुणों को विकास करना चाहिये। उनका चरित्र निर्माण प्रारंभ से से करना चाहिये। त्रुटियां करने पर उसे सहर्ष स्वीकार करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये।, ना कि, सत्य बोलने पर अपमानित व दोषी करार देना चाहिये।
प्रवीण जी- मित्र ,हम चरित्र व आचरण से पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करने लगे हैं। मानसिक गुलामी हमारे अंतर में घर कर गई है, और उससे हम मुक्त होना नहीं चाहते। “राजनीति झूठ और सपनों का व्यापार है ।लोभ, लालच का साम्राज्य है। राजनीति में हम अपने माता-पिता पर भी विश्वास नहीं कर सकते, ऐसा कहा गया है। जब अविश्वास ,झूठ , प्रपंच द्वारा फैलाए गए मायाजाल में घिरकर मनुष्य सत्य- असत्य का निर्णय स्वयं ना करके, दंभी लोभी लालची मनुष्यों पर विश्वास करने लगता है, तब हम सचरित्र और संतों की वाणी का सार कैसे ग्रहण कर सकते हैं। यह विरोधाभासी लगता है।” भय, प्रलोभन की आड़ में ,उसे अपना अस्तित्व संकट मय प्रतीत होता है।
अंबर जी– हमें, महापुरुषों ,महान संतों की जीवनी सदैव अनुकरणीय होती है ,अवश्य पढ़नी चाहिये। वैज्ञानिक ,सनातन धर्म पर विश्वास करना चाहिये, तथा, विदेशी आक्रांताओं द्वारा फैलाई गये भ्रम, और अंध विश्वास का दृढ़ता पूर्वक विरोध करना चाहिये। विदेशियों ने हमारे गुरुकुल संस्कृति को नष्ट करके वैदिक ज्ञान तथा उसमें समाहित विज्ञान ,ज्योतिष, खगोल शास्त्र की महत्ता को नष्ट कर दिया,और कूट रचित कथाओं के माध्यम से अपना महिमामंडन किया ।अतः हमें सदैव सतर्क रहने की आवश्यकता है, एवं प्राचीन भारत वर्ष की संस्कृति को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान समय में देश,काल, परिस्थितियों के अनुकूल है ।तभी, अपना खोया हुआ आत्मविश्वास, पुरातन ज्ञान, विज्ञान संपूर्ण निष्ठा से प्राप्त कर सकेंगे,तथा आत्मविश्वास व आत्म गौरव से अपना जीवन यापन कर सकेंगे। हमें सत्य ,सनातन ,शाश्वत संस्कृति को स्वीकार करना ही होगा। तब, हमारी कथनी करनी का भेद मिट सकेगा, और हमारा आचरण अनुकरणीय होगा।
साहित्यिक गोष्ठी के समस्त सदस्यों ने सहर्ष इस प्रस्ताव को स्वीकार किया, और शिक्षा पद्धति में आमूल-चूल परिवर्तन करने की मांग की। जिससे हम भारतवासी की कथनी करनी में अंतर ना हो सके, और उसका जीवन अपने शिशुओं की उन्नति व समाज के हित में अनुकरणीय हो सके ।वर्तमान नयी शिक्षा पद्धति , सरकार द्वारा, पूर्ण अध्ययन के पश्चात लागू की जा रही है, ,यह भारतीय समाज, सनातन संस्कृति के हित में सार्थक हो। इसी सदकामना के साथ अध्यक्ष जी ने चर्चा को विराम दिया ।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव” प्रेम” सीतापुर।