कत्ल का सामान बनकर
कत्ल का सामान बनकर देखो यूँ ना आया करों
अपनी खुशबु से मेरी रूह को ना महकाया करों
दिल के अरमानों की तबाह हो चुकी बस्तियों पर
आँखो में मौसम लेके बिजलियाँ ना गिराया करों
तेरे रूप की खुशबु से महके मेरे मन का मधुवन
ख़्यालो में ऐसे आकर सपनें को ना सजाया करों
प्यार की रहगुजर से गुजरेंगे हम दोनों मिलकर
राह तकती आँखों को राह ऐसी ना दिखाया करों
तेरी यादों की ब्यांर से होता जलता है दिल मेरा
जिंदगी शिक़वे होंठो पर हजार यूँ ना लाया करों
अब के सावन से बरसती आग ने जलाया मुझे
तेरे छूने से दिल हरा मेरा जरा छु मुझे जाया करों
मेरे सरजमीं ए दिल पर छाया तेरा तूफ़ाँ ए इश्क
गुलशने उल्फ़त में अपने जलवे ना बिखराया करों
जब भी मिलती है निगाहें तेरी शोख नजरो से मेरी
कत्ल करके मुंह से हाय राम ना निकलवाया करों
कहता अशोक चली तेरी यादों की आज पुरवाई है
बेशुमार दागे मोहब्बत में ये गजल यूँ ना गया करों
कसम तुम्हारी खुशबु से वैसे ही नशे में रहता हूँ मैं
इन छलकती शराबी आँखो से यूँ ना पिलाया करों
तेरे काजल की स्याही से आज कत्ल हुआ हूँ मैं
देखो कत्ल कर के तुम मेरा ना ऐसे इतराया करों
चलती हो तुम जो ऎसे कभी चिंगारी कभी शोला
जिस्म से जाँ जुदा,नागिन सी ना बल खाया करों
तुझे देख के मैख़ाना भी प्यासा रह गया मेरे सनम
अपनी तिरछी नजरों से यूँ नशा ना कर जाया करों
अशोक सपड़ा की कलम से