कत्ल करती उनकी गुफ्तगू
हमको तो कत्ल करती है उनकी गुफ्तगू।
सामने जब होते है वो ,मेरे साथ रूबरू।
प्यारा है मेरा दिलबर,दूर न हो पलभर
नकल करें हंस हंस,वो मेरी हू-ब-हू।
अखियां मिली जब से,मन भागे तब से
पता नहीं किधर , क्यों भागे ये चार सू।
मिलन हो या न हो, तमन्ना अब तुम्ही हो
रूह तो अब करेगी,बस तेरी जुस्तजू।
राह इतनी मुश्किल,मानें न फिर भी दिल
क्यूं चाहता है मरना, इश्क में आखिर क्यूं।
सुरिंदर कौर