आसमां
देखो आज मां के आंचल सा मुझपे छाया है आसमां…….
रोज मैं गिनता तारों को, है कितना पास आसमां।
सीखता मैं तो रोज गिनती,भुलवा देता है आसमां।
तर्जनी से एक एक कर गिनता, फिर हिल जाता आसमां
मां मैं तो गिनता हूं अनवरत, विघ्न डालता आसमां
मां, ये सारे तारे ही हैना,या पापड़ बेलता आसमां।
या फिर साबुन के पानी से बना, बुलबुले खेलता आसमां
मां मुझको तो लगता है, बर्फ के हैं ये तो गोले।
शायद है आसमां चाहता,भरलूंमैं भी इनसे झोले।
या फिर भरमाता मुझको फेंक वो रूई के फोहे।
देखो हैं शुभ्र श्वेत सुंदर, अंबर नीले पे ये सोहे।
झिलमिल जगमग करके,रोज सबका ही मन मोहें।
जैसे मैं देखूं नित्य उसको, क्या वो भी देखता है मां।
बता, क्या वह नीला आसमां रोटियां सेकता है मां।
नीलम शर्मा