कण-कण तेरे रूप
झुरमुटों की
छाँव में,
सुन्दर सरोवर,
गांँव में,
हरियाली इसके
चहुंँओर,
पशु-पक्षी
करते किलोल,
फल-फूल से
लदे उपवन,
मधु-पराग को
फिरते भ्रमर,
मद-सुवास से
मादक पवन,
वश में नहीं
पागल ये मन,
मन में बसे प्रभु
राधा के संग,
रचने लगे वे
रास-रंग,
मैं भाव-विभोर
बेसुध फिरूंँ,
प्रभु संग रास
मैं भी करूंँ,
प्रभु दे वर, इसी
भ्रम में जिऊंँ,
कण-कण तेरे रूप
के दर्शन करूंँ।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)