“”कडि़या””
टूटी-फूटी कडि़या जोड़ लिया करती हूँ…
गुत्थी हो रिश्तों में तो खोल लिया करती हूँ…
अपनी ना सही अपनों की कदर कर लिया करती हूँ..
फूलों की इस बगिया को प्यार से सींच लिया करती हूँ…
कुछ मैं भीअपने दरद को लिख लिया करती हूँ…
कुछ दूसरों के दरद को महसूस कर लिया करती हूँ…
अपना कोई नहीं दिलबर, इसीलिए दिल के जज्ब़ात कागज पर,
उतार लिया करती हूँ….
मैं अपना राग खुद गा लिया करती हूँ….
नही करती खुदा से बन्दगी दे खुशी बेशुमार मुझे,
लेकिन दे खुशी तो उनको सहेजकर रख लिया करती हूँ….
टूटी-फूटी कडि़या जोड़ लिया करतीहूँ…
हो रिश्तों में खट्टास अगर तो , उनमें प्रेम का रस डाल दिया
करती हूँ….
अपनें बगीचें में खुश्बू के फूल खिलाया करती हूँ….
अपनें बगीचें में रूठे रिश्तों को मिलाया करती हूँ…
टूटी-फूटी कडि़या जोड़ लिया करती हूँ…
गुत्थी हो रिश्तों में तो खोल लिया करती हूँ…
Written by….SAiNi