कड़वी दवाई
लाला कालका प्रसाद जी जमीदार थे, साथ ही धर्मशील एवं सज्जन व्यक्ति थे। आजादी के बाद जागीरदारी रही नहीं, जमीन भी उतनी नहीं रही पर उनके धर्म कर्म के काम जारी रहे।
संगीत के शौक के चलते वे कई कलाकारों को आर्थिक सहायता दिया करते, कई गरीब बच्चों की पढ़ाई लिखाई, गरीब कन्याओं की शादी विवाह इत्यादि सामाजिक कार्य बदस्तूर जारी थे, जो उनके शराबी बेटे को कतई पसंद नहीं आते थे, जिसके दोनों के बीच वाद विवाद होता रहता था। जुए शराब अन्य बुरी आदतों के चलते इकलौते बेटे से मनमुटाव बना रहता था, बेटा शहर में पढ़ाई लिखाई के दौरान गलत संगत में बिगड़ चुका था, शादी भी हो गई थी। एक दिन बाप बेटे में विवाद इतना बढ़ गया की बेटा अपना हिस्सा मानने लगा। कलह से परेशान हो उम्र दराज जागीरदार साहब ने हिस्सा देकर अलग करना ही उचित समझा, जमीन एवं हवेली में आधा हिस्सा देकर अपने हाल पर छोड़ दिया। जमीदार साहब की दिनचर्या नियम धेम अमूमन वही थे, धर्म-कर्म संगीत सामाजिक कार्य में उनका समय निकल जाता, बेटे द्वारा अनाप-शनाप किया जाने वाला खर्च भी खत्म हो गया था। आर्थिक रूप से उन्हें कोई परेशानी नहीं थी, लेकिन बेटे के कारण उन्हें दुख होता था। समय जैसे पंख लगा कर उड़ा जा रहा था। 5 साल हो गए थे बाप बेटे को अलग अलग हुए। बेटा और आजाद हो गया था, खेती भी दूसरों के भरोसे हो रही थी, कर्ज लेकर सभी ऐसो आराम जारी थे। आखिर एक दिन आया कि जमीन बिकने की नौबत आ गई कर्ज देने वालों ने आंखों की शर्म तोड़ दी थी, बेटे से अपशब्दों का प्रयोग करने लगे थे, बातें जागीर साहब तक पहुंची, बहुत दुखी हुए। जागीरदारनी बोलीं सुनो जी कुछ करो, आखिर इज्जत तो हमारी भी जाएगी। सुना है कर्ज कर्ज देने वाले लोग मुन्ना को गाली गलौज कर गए हैं। कल बहू आई थी बहुत रो रही थी बच्चे भी परेशान हैं, बहु कह रही थी अपमान के घावने मुन्ना को भी सही कर दिया है। मुन्ना ने 15 दिनों से शराब से हाथ नहीं लगाया है, अपने किए पर बहुत पछतावा कर रहा है, आपके सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। अंधकार मय भविष्य उसे बहुत डरा रहा है, आप कुछ कीजिए। आखिर इस हवेली और हमारी इज्जत का सवाल है।
तुम क्या समझती हो शांति, क्या मैं इन 5 सालों में चुपचाप बैठा हूं? इसको सुधारने के चक्कर में मैंने ही यह सब नाटक रचा है। कांटे से कांटा निकालना पड़ता है, मर्ज को दूर करने के लिए कड़वी दवाई का डोज भी देना पड़ता है। जो अपनों की भाषा नहीं समझता, उसे अपने तरीके से ठीक करना पड़ता है। यह गाली गलौज अपमान करने वाले, कर्ज देने वाले सब मेरे ही आदमी थे। मुन्ना को अपनी गलती का एहसास हो गया है, सब ठीक हो जाएगा।
दूसरे दिन जागीरदार साहब ने सभी साहूकारों का हिसाब चुकता कर दिया। मुन्ना की आंखों में पश्चाताप के आंसू झड़ रहे थे, माता पिता के चरणों में गिर पड़ा, हवेली की इज्जत नीलाम होने से बच गई, जागीरदार साहब की कड़वी दवा अपना काम कर
गई थी।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी