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14 Apr 2018 · 1 min read

कठुआ की परी

देखो आज फिर से हवाओं में मचा कोलाहल,
मानवता को “मानवरुपी पशु” ने किया हलाहल।

किस की पीठ थपथपाऊँ, किस टीले चढ़ नारा लगाऊँ
किसको मैं धैर्य बधाऊँ, किसका लहू पी जाऊँ।

कर लूँ कैद खुद को मैं तू ही बता,
या,
किस देवी को बोल मैं तेरी बलि चढ़ाऊँ

कितने आसूँ पोछूँ, कितने दर्द को झेलूँ,
या,
आसूँओं के समंदर में तुझको डुबोऊँ।

शांत रहूँ मैं, अब भी शांत रहूँ मैं!!
या,
चीत्कारों से गगन-धरा को हिलाऊँ ।

मूक दर्शक बनी रहूँ क्या मैं “सरिता”
या,
झकझोर कर सोये मानव को जगाऊँ।

#सरितासृजना

Language: Hindi
263 Views

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