कठपुतली
फिर कठपुतली बन जाऊं मैं
हर बात पर सर हिलाऊं मैं
नाज़ुक डोर खींचती हाथ
हंसाती, रूलाती करवाती बात
विचारों की जरुरत नहीं
भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं
जो कहा जाए वो दोहराऊं मैं
फिर कठपुतली बन जाऊं मैं
ये अच्छा है और वो भी
अच्छे और बुरे से परे कहीं
कहना सुनना कुछ नहीं
दुनिया मेरी रंगमंच की जमीन
अभिनय करूं मन बहलाऊं मैं
फिर कठपुतली बन जाऊं मैं
चित्रा बिष्ट
(मौलिक रचना)