कठपुतली
कुछ सहमा- सहमा सा कुछ दबा – दबा ,
कुछ भीतर ही भीतर लड़ता हुआ ,
अंतरद्वन्द से मुक्त होकर ,
मुखर होने का प्रयास करता हुआ ,
अभिव्यक्त होने का साहस जुटाता हुआ .
भविष्य के प्रति चिंतित होता हुआ,
कभी स्वआकलन कर आश्वस्त होता हुआ ,
कभी सर्वत्र व्याप्त विसंगतियों में तर्क ढूंढता हुआ ,
यथार्थ का आवरण ओढ़े ,
कल्पना लोक में विचरण करता हुआ ,
नियती का चक्र मानकर ,
परिस्थितियों से समझौता करता हुआ ,
आज का मानव वर्तमान त्रासदी को झेलता हुआ ,
जीवन के रंगमंच पर कठपुतली बनकर रह गया है।