कठपुतली हैं अजर अमर
कठपुतली हैं अजर अमर
बीते जमाने में
होता था खेल कठपुतली का
भले ही हो गई लुप्त
वह कला
वो खेल-तमाशे
वो तमाशगर
वो तमाशबीन
लेकिन कठपुतली हैं अजर-अमर
पहले थीं वो निर्जीव
अब हैं सजीव
कठपुतली भी सजीव
तमाशगर भी सजीव
तमाशबीन भी सजीव
अब तमाशगर
हिलाता है डोर
इलैक्ट्रिक मिडीया से
प्रिंट मिडीया से
सोशल मिडीया से
नाचने लगती हैं
दुनियाभर की कठपुतलियां
कठपुतली हैं अजर-अमर
नाचती रही हैं
नाच रही हैं
नाचती रहेंगी
-विनोद सिल्ला©