कट गई शाखें, कट गए पेड़
कट गई है शाखें, कट गए है पेड़
उड़ गए है पक्षी, भाग गए है पशु
बिगड़ गया है प्रकृति का संतुलन
बढ़ा है प्रदूषण, दूषित हो गया जल
भर गया है ज़हर फेफड़ों में हमारे
बंजर हो गई है हरी भरी ये धरती
बरस रहे है भीष्ण अंगारे सर पर
डोल रहा है धरणी का जल स्तर
पड़ गए है सूखे सारे ताल तलैया
मर रहे है प्यासे सभी जीव जन्तु
गुम हो गया है धरा का गहना पेड़
लुप्त हो गया है सुंदर मनोरम दृश्य
फैला है सिर्फ़ सूनापन, उजाड़पन
मच गया है हा हा कार धरती पर
खतरे में पड़ गया है अस्तित्व हमारा।
– सुमन मीना (अदिति)