कटु सत्य –संस्मरण
कटु सत्य
एक अमिट विश्वास उत्साह एवं उमंग लिये वो दोपहर प्राथमिक विद्यालय शंकर गढ़ जनपद इलाहाबाद का सुनहरा पल था । शिक्षक संग विध्यार्थी अपना अटूट सम्बंध जोड़ कर अध्ययन रत थे , अचानक सायं चार बजे घंटे की ध्वनि सुनायी पड़ती है । शोरगुल और भागदौड़ के माहौल में विध्यार्थी अपना –अपना बस्ता, स्लेट पट्टी लेकर जैसे बांध तोड़ कर भागे हों । अनुशासन के माहौल में अचानक तब्दीली आ गयी थी । बच्चे किलकारी मारते हुए मुख्य दरवाजे की ओर सरपट भाग रहे थे , और शिक्षक लंबी सी बेशरम की छड़ी लेकर प्यार से हरकते हुए उन्हे नियंत्रित करने की कोशिश मे लगे थे । कुछ अनुशासन प्रिय बच्चे अपने एकमात्र प्रिय क्रीडा शिक्षक के साथ विध्यालय के खाली होने का इंतजार कर रहे थे , शिक्षक अपने –अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे । हमारे क्रीडा शिक्षक का उत्साह देखते ही बनता था । अनुभव ने उन्हे बहुत कुछ सिखाया था , उनका अनुभव कह रहा था कि पी ॰ टी ॰ कि तैयारी में उनका विध्यालय जनपद में उनका नाम रोशन जरूर करेगा । सभी विध्यार्थी कदमताल कर रहे थे । उनमे गज़ब का आत्म विश्वास था । सभी कुछ सामान्य चल रहा था । क्रीडा के अंतिम दौर मे पिरामिड बनाने कि प्रक्रिया प्रारम्भ हुई , इस प्रक्रिया मे मुझे छ : बड़े बच्चों के ऊपर स्थित चार बच्चों के ऊपर चढ़ कर जयहिंद का नारा बुलंद करना था ।
उस दल में मैं सर्वश्रेष्ठ विध्यार्थी के रूप में चुना गया था , प्रक्रिया आरंभ हुई , मैंने जय हिन्द का तीन बार नारा बुलंद किया ।
अचानक मेरे एक साथी का एक पैर डगमगाया , तभी मेरे मन में कोतूहल जागा , मैंने सोचा इस ऊंचाई से कूद कर क्या मैं सुरक्षित बच सकता हूँ ?
मैं इतना स्वार्थी व निर्दयी अपने आप से हो जाऊंगा , किसी ने सोचा ना था । सारी मान्यताओं और आदर्श को ताक पर रख कर मैंने छलांग लगायी , और अपने शिक्षक के सुनहरे सपनों को चकनाचूर कर दिया।
शिक्षक स्तब्ध थे , उन्हे मानों लकवा मार गया था , अनायास हुए इस घटना क्रम में अपने प्रिय छात्र को गिरे हुए देख कर उनका सपना टूट कर बिखर गया था , उनका विश्वास खंड –खंड हो गया था ।
मैंने उठने का प्रयास किया , कुछ साथियों ने संभाल कर उठाया । वातावरण में शांति छा गयी थी , संयत होने में उन्हे कुछ वक्त लगा , फिर उन्होने मेरा हाल –चाल पूछा । मामूली चोट आयी थी परंतु सभी अंग सुचारु रूप से कार्य कर रहे थे ।
उन्होने ईश्वर का धन्यवाद किया , व अपनी नौकरी पर लगते ग्रहण के बारे में सोच- सोच कर उन्हे जो घबराहट हो रही थी , उस पर विराम लगा ।
तब मैं मात्र दस वर्ष का अबोध बालक था , जो इस कृत्य की गंभीरता को नहीं समझता था । मैंने गंभीर संकट में अपने प्रिय गुरुदेव को डाला है इसका अंदाज मुझे तनिक भी ना था । आज से ही मैं अपने विध्यालय का हीरो छात्र खलनायक छात्र की भूमिका निभा रहा था , जो छात्र इस विध्यालय की शान में चार चाँद लगाने वाला था , उस पर से गुरुओं का विश्वास डोल गया था ।
कुछ दिनों में मैं स्वस्थ हो गया । विध्यालय के प्रांगण मे गुरुदेव अपने छात्रों का मार्ग दर्शन कर रहे थे , परंतु मैं उनमें कहीं नहीं था । यहाँ तक कि गुरुदेव का व्यवहार इतना कठोर हो गया कि मुझे अपमानित कर छात्रों के दल से निकाल दिया गया ।
यह मेरे जीवन की ऐसी अभूतपूर्व घटना थी , जिसके लिए ना मैं माफी मांगने योग्य था , ना उसके लायक मुझमें समझ ही थी । मैं अंदर से अपमान एवं कुंठा से टूट गया था , परंतु मेरे अंदर का विध्यार्थी अभी जीवित था । वह मुझे हिम्मत बंधा रहा था कि खेल में ना सही अध्ययन के क्षेत्र में अपनी शीर्षता बरकरार रख सकता हूँ , जिसे मैंने निभाया और खोया आत्म विश्वास पुन : प्राप्त किया ।
विधि को शायद यही मंजूर था कि अपने प्रिय गुरु से छल करूँ , उनके विश्वास को ठेस पहुंचा था और मेरा जीवन खतरे में पड़ गया था । मेरे शिक्षक का भविष्य कुछ समय के लिए ही सही अंधकार मय हो गया था ।तब से मेरे लिए शिक्षक का विश्वास , प्रेम , प्रशंसा ही सब कुछ है । मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख एवं सजा अपने गुरु का विश्वास खो कर मिली थी , शायद जीवन के पथ पर बचपन की अठखेलियों के बीच जीवन का कटु सत्य मुझे ज्ञात हो गया था।
संस्मरण डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
21- 01 -2018 इंचार्ज ब्लड बैंक , जिला चिकित्सालय
सीतापुर