— कटी फटी बनियान —
न जाने कितने गम लिए
हर गम को सेहन किये
चलता ही जा रहा हूँ
अपने मेहनत के बल पर
बढ़ता ही जा रहा हूँ
बेपरवाही का आलम
संग संग लिए
चलता ही जा रहा हूँ
कर के दिखाना है
घर अपना बनाना है
परिवार का बोझ उठाते हुए
बस चलता ही जा रहा हूँ
क्या पहना , कैसा पहना
क्या खाया, क्या मिला
न बरसात , न सर्दी , न गर्मी
बस चले जा रहा हूँ
खत्म न हो मेहनत के दिन
अपनी कमी से मिले सुख
परिवार सदा सुखमय हो
उसके लिए बढे जा रहा हूँ
बच्चे कहते , पापा यह क्या
इतने छेद हैं बनियान में
क्या कहेंगे सब देखो
जरा अपनी ओर
सब के सुख की खातिर
हर दर्द सहे जा रहा हूँ !!
सफल हो जाए मेहनत
इस से ज्यादा क्या चाहिए
आगे बढे परिवार सदा
उनकी हर इच्छा के लिए
बस जिए जा रहा हूँ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ