*कक्षा पांचवीं (संस्मरण)*
हमारी आज की यथार्थता की कल्पना दस साल पहले किसी ने न की होगी;कौन क्या करेगा, कहाँ रहेगा किसी ने न समझा होगा और दस साल बाद की हमारी यथार्थता की भविष्यवाणी भी कोई नहीं कर सकता.
हम कक्षा पाँचवी में तेरह थे:आठ लड़के और पाँच लड़कियाँ.हम में से सभी हेड थे और एक बॉसगिरी सभी के स्वभाव को घेरी थी.मेरा एक दोस्त बंशीवाला है:वो जी.एम तथा कक्षा का मॉनिटर था,पाँचों लड़कियाँ प्रायः प्रार्थना वादन की साक्षात देवियाँ थी, गंगाराम भाई लकड़ियाँ इकट्ठी करवाने वाला मैनेजर था क्योंकि सरकारी स्कूल में खाना बनने की योजना है और खाना पकाने के लिए लकड़ियाँ ले जानी पड़ती है.पाँच वालों को बिना लकड़ी के स्कूल आने की विशेष छूट थी.
स्कूल का सफाई मंत्रालय हमारे ही हाथों में था,हम तब सफाई करवाने में विश्वास रखते थे,स्वयं करने में नहीं.नटवर घंटी बजाने का बड़ा शौकीन था, घंटी बजाने के लिए उसने बहुत संघर्ष किया:कक्षा चार वालों में अपना खौफ जमाया,अपने नित्य दिन के सवा नौ से पोने दस बजे तक के समय को घंटी के सामने ही बैठकर गुजारा,उसमें घंटी बजाने के प्रति असीम धैर्य भी था तो त्याग भी.
इंटरवेल में खाना खाने के बाद जूठी थाली धोने की पंक्ति हम से ही शुरू होती थी,चाहे सबसे आखिरी में ही क्यों न खाया हो हमारे लिए विशेष प्रावधान था.चोर-पुलिस खेलते हुए हम सदैव चोर ही रहे और कक्षा चार वालों को ठगाते रहे,छुट्टी होने पर हम ही विद्यालय बंद करने वाले होते थे,गुरुजी के लिए दाल-सब्जी और घी-दूध का बन्दोबस्त करना हमारा ही ठेका था,कभी अचानक किसी की तबीयत खराब हो जाय तो हम ही संकटमोचन थे,कुल मिलाकर हम बहुत कुछ थे.
डोट पेन से लिखना उन दिनों ऐसा अपराध माना जाता था जैसा कि किसी पुलिस वाले को ऑन ड्यूटी थप्पड़ मारना, लेकिन फिर भी दो-चार ऐसे भी थे जो स्कूल में डोट पेन लाया करते थे; गोपालदास भाई और रामपाल भाई का नाम उस लिस्ट में उल्लेखनीय था,हालांकि डोट पेन से लिखने का दुस्साहस वे भी न कर पाते थे महज एक शौक था,एक जज्बा था किसी के आगे न झुकने का,एक दिखावा था कि हम भी डोट पेन खरीद सकते हैं.
पंकज बिंदास