कई ‘शे’र बिखर गए तो कई गजले…।
ईर्ष्या है मुझे तेरे नाम से वक़्त बदले तो हम भी बदले
पर कैसे बदले यादों को याद है इश्क़ – ए -सर- ए- आम कत्ले।
मैं अकेला नहीं था इंसाफ के लिए भीड़ उमड़ी थी
मोहब्बत की अदालत इश्क़ की सुनवाई और कटघरे में फ़ैसले।
हंसते हुए जो व्यथा प्रकट करी रोते हुए दलीलें बयां करी
साहब ! तबाह यूं हुआ जैसे साजिश में जलती है फसलें।
‘ राव’ उम्मीद तो उसकी यादों में खो जाने कि थी
जिस मन से प्रेम उमड़ा था ,अब तू नफ़रत ही रखले।
गजल तेरे नाम की लिखू या तुझपे इतनी खूबीयाँ तो नही तुझमें
वो तो हमने नज्म ऐसा मारा कई ‘शे’र बिखर गए तो कई गजले…।