कई शामें और गिनती के कुछ अफ़सानें
ऐसी कई शामें गुज़र जाती हैं जब काफी शिद्धत से सोचता हूं आपके बारे में ।
उन गिनती के अफ़सानों को याद करके मन ही मन मुस्कुराता हूं, ये उम्मीद रखते हुए,
कि क्या ये कभी-क़बार की मुलाकातें कभी जिंदगी भर के साथ के अंजाम तक मुकम्मल होंगी?
या फिर रह जाएँगी दिल की बनी हुई ख़ुराफ़ातें,
और ऐसे ही रह जाएंगी तन्हा ये रातें ।