कई महीने साल गुजर जाते आँखों मे नींद नही होती,
कई महीने साल गुजर जाते आँखों मे नींद नही होती,
जब एक मासूम सा दिल टूटता..
मन के भीतर शोर होता बाहर नीरसता पसरी होती,
जीवन से मोह नही पर मर नही सकते, कायर थोड़े हैं..
अन्न का हर निवाला फिर आँसुओं से धो कर खाना,
मन के भीतर के संघर्ष से लड़ते-लड़ते हर दिन थोड़ा-थोड़ा मर
जाना,
आसान नही होता प्रेम को खो कर जी पाना..!
गूँज रही हों यादें..
कोई मुझसे ज्यादा हो मेरे भीतर,
हर सांस, हर अहसास, हो कर्जदार जिसकी,
मुस्कुराने पर भी हो हुकूमत जिसकी,
जिस पर लगता हो अधिकार अपना,
जो मुझसे भी ज्यादा हो मेरा अपना,
उसका एक दिन अचानक पराया हो जाना,
सम्भव है क्या एक बार मर कर फिर किसी का जी जाना..?
हर पहर भीगी आँखे ढेरों शिकायतें,
अब वह महत्वहीन है कहकर खुद को समझाना,
हर दिन के गुजरने का एक लम्बा इंतज़ार,
कैलेंडर पर एक दिन और जीत जाने की मोहर लगाना,
आसान नही है किसी खुदगर्ज इंसान से प्रेम निभाना..!
सुलगते अंगारो पर रखनी होती है जिंदगी अपनी,
स्वाभिमान को रौंदता वह हर दिन जूतों के नीचे,
भीख सा मिला प्रेम, गले का फांस बन जाता है,
फिर जीवन समेटकर उदासी यूँ ही गुजर जाता है..!
– शुभम आनंद मनमीत