“मनुज बलि नहीं होत है – होत समय बलवान ! भिल्लन लूटी गोपिका – वही अर्जुन वही बाण ! “
कई बार हमारे मित्रों ने पूछा की इस कथन का अर्थ क्या है
“मनुज बलि नहीं होत है – होत समय बलवान ! भिल्लन लूटी गोपिका – वही अर्जुन वही बाण ! ”
शास्त्रों में विदित है की जब श्री कृष्ण ” वैकुण्ठ” जा रहे थे तो अपनी १६००० पटरानियों को हस्तिनापुर पहुंचाने की जिम्मेवारी – अर्जुन पर छोड़ गए थे , और जब अर्जुन उनको द्वारिका से हस्तिनापुर ला रहे थे – तो बीच सफर में ही “भीलों” ने उन पटरानियों का अपहरण कर लिया ! वही गांडीव धनुष धारी अर्जुन जो महाभारत में सब को परास्त करने का पराक्रम रखता था. यहाँ कुछ भी नहीं कर पाया !
क्यों की – वही अर्जुन और वही उसका सामर्थ्य – बिना ईश्वर की कृपा और उनके साथ के “असहाय – बलहीन और पराजित” हो गया !
ऐसा अनुभव है और शास्त्रों में भी लिखा है – के जब तक ईश्वर की कृपा नहीं होती है और समय / ग्रह दशाएं अनुकूल नहीं होती – तो बलवान से बलवान व्यक्ति भी असहाय और निर्बल हो जाता है !
कोई भी व्यक्ति – चाहे कितना भी बलवान या सक्षम हो – थोड़े समय के लिए कुछ भी सोच कर खुश हो ले की सभी चीजें उनकी अपनी इक्षा से संचालित होती हैं –
पर – सब समय और ग्रहों की संरचना एवं ग्रह दशाओं के असर से ही संचालित होता है और अगर ईश्वरीय दिव्य आशीर्वाद / ईश्वर की अनुकम्पा नहीं हो तो उसे धराशायी होने में “बस एक क्षण लगता है
और यह ” शाश्वत सत्य” है !