कई बार मन करता है रोया जाए… खूब रोया जाए… किसी ऐसे के सा
कई बार मन करता है रोया जाए… खूब रोया जाए… किसी ऐसे के सामने जो हमें चुप ना कराए…बल्कि कहे कि- रो लो और तब तक न रोकना अपना रोना,जब तक तुम्हारी आँखों के नीचे जमी उदासी और अधजगी रातों के दुःख का कालापन धुल कर बह न जाए…और तुम थक कर टिका दो अपना सर मेरे कांधे ….
हम सभी बेहिसाब रोना रोके हुए हैं…और तलाशते रहतें हैं ऐसा ही कोई जिसके सामने जी भर के रो सकें…और वो हमें चुप न कराए बस पास बैठे और कहे रो लो….. मैं हूँ यहाँ तुम्हारे पास…!!
अगर हम लोगों के अंदर जरा सा झाँक भर लें तो पाएंगे
कि-हर शख़्स हँसने से ज़्यादा किसी के साथ जी भर के रोना
खोज रहा है …!!