कंठ तक जल में गड़ा, पर मुस्कुराता है कमल ।
कंठ तक जल में गड़ा, पर मुस्कुराता है कमल ।
तब कहीं संसार को इतना लुभाता है कमल ।
चूमकर किरणों ने जाने क्या सुबह था कह दिया ,
शाम तक बिल्कुल नहीं पलकें झुकता है कमल ।
ताल मिटते जा रहे हैं अब कहाँ जाकर खिले ,
आँसुओं की झील में ही झिलमिलाता है कमल ।
रूप की आराधना में साथ कवियों का दिया ,
सुन्दरी की श्याम अलकों को सजाता है कमल ।
पी गया है शान से जो गर्दिशों की धूप को ,
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा सबको सिखाता है कमल ।
साथ रोटी के, शहीदों का बना सम्बल कभी,
राष्ट्र की आराधना के गीत गाता है कमल ।