कंजूस (लघुकथा)
कंजूस( लघुकथा)
कवि रत्नाकर ‘हँसोड’ ने एक प्यारा- सा गीत एक सप्ताह का समय लगाकर लिखा।एक – एक शब्द को तराशा,चमकाया।उनकी मेहनत रँग लाई।
गीत बना भी बड़ा प्यारा-शिल्प और भाव दोनों ही दृष्टियों से।उन्होंने एक बार अपने गीत पर मुग्ध दृष्टि डाली और फिर उसे गुनगुनाने लगे।
उनके घर के पास से गुज़र रहे प्रधान जी ने गुनगुनाते सुन लिया,बोले- भाई हँसोड जी क्या गा रहे हैं? हमें भी तो सुनाइए।
हँसोड जी ने गीत गाकर सुनाया तो सभी झूम उठे।तब तक हँसोड जी के घर के आगे गाँव के कई लोग इकट्ठे हो चुके थे।सबने गीत की मुक्त कंठ से सराहना की और चले गए। हँसोड जी ने सोचा कि अब इस गीत को फेसबुक समूह ‘गीतमाला’ पर पोस्ट करता हूँ।
हँसोड जी ने गीत के ऊपर लिखा – समूह के पटल पर मेरा पहला प्रयास-और नीचे अपना गीत पोस्ट कर दिया।कुछ देर बाद पहला कमेंट आया- वाह।
हँसोड जी अपनी प्रकृति के विपरीत उदास – सा चेहरा लेकर बैठ गए और सोचने लगे कि क्या गीत सच में ‘वाह’ लायक ही था।
डाॅ बिपिन पाण्डेय