कंचन प्यार
कंचन प्यार (स्वर्णमुखी छंद/सानेट
मधु प्यार बने दिखना प्रिय रे।
सागर की लहरें बनना प्रिय।
रत्न दिखावत भेंट करो हिय।
अति मोहक रूप धरे मिल रे।
सरलाकृति सुन्दर नव्य सदा।
भावुक मानस भव्य लगे रे।
नूतन सभ्य स्वभाव जगे रे।
विनयाश्रय नम्र प्रभाव सदा।
नित प्रीति परस्पर दृश्य दिखे।
मानव प्रेम उपासन हो अब।
बंधु सु- आसन कायम हो तब।
शुभ भोर सुदेवस नित्य लिखे।
इतिहास प्रकाश करे मन को।
आतम रूप मिले सब ही को।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।