औषधीय गुणों से भरपूर है पलाश फूल
इन दिनों झारखंड के जंगलों में पलाश के फूल देखते ही बन रहे हैं । आदिवासी संस्कृति में इन फूलों का काफी महत्व है । इस वक्त जो भी इन फूलों को देखता है या इन रास्तों से होकर गुजरता है वो यहां ठहर जाना चाहता है । क्योंकि इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानो धरती पर इससे खूबसूरत चीज और कुछ हो नहीं सकती ।बसंत शुरू होते ही ये फूल दिखाई देने लगते हैं । आदिवासी लड़कियां इन फूलों को अपने जुड़ों में लगाकर सजती संवरती हैं । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इस फूल का विशेष महत्व है। परंपरा है कि जब तक पलाश के फूल से जाहिर थान में पूजा ना हो जाए महिलाएं इसे अपने जुड़े में नहीं लगाती । पलाश का पेड़ मध्यम आकार का, करीब 12 से 15 मीटर लंबा, होता है। इसका तना सीधा, अनियमित शाखाओं और खुरदुरे तने वाला होता है। इसके पल्लव धूसर या भूरे रंग के रेशमी और रोयेंदार होते हैं।
इस फूल का एक छोटा सा दुर्भाग्य यह है कि इसमें अधिक सुगन्ध नहीं होती लेकिन फिर भी यह रंग-रूप और अपने आयुर्वेदिक गुणों से लोगों का मन मोह लेता है।
बसंत ऋतु में इनका फूलना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ऋतुराज बंसत का आगमन पलाश के बगैर पूर्ण नहीं होता, अर्थात इसके बिना बसंत का श्रृंगार नहीं होता है। चाँदी से भी कीमती है इस वृक्ष के सभी भाग विभिन्न रासायनिक गुण होने के कारण यह वृक्ष आयुर्वेद के लिए विषेश उपयोगी हैं। इसके गोंद, पत्ता, पुष्प, जड़ सभी औशधियों गुणो से परिपूर्ण है। इसीलिए इसका पुष्प झारखंड सरकार का राजकीय पुष्प भी कहलाता है। यह पुष्प अपने औशधी गुण के कारण भारतीय डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है।
पलाश के पत्ता में बहुमूल्य पोशक तत्व होते है. जो गर्म खाने में मिल जाते है। जो शरीर के लिए बेहद फायेदेमंद है।
आयुर्वेद की माने तो टेसू के फूलों के रंग होली मनाने के अलावा इसके फूलो को पीसकर चेहरे में लगाने से चमक आती है। इन रंगों का उपयोग कपड़े रंगने में किये जाते हैं । हर्बल गुलाल बनाने में भी इनके फूलों का उपयोग किया जाता है ।
टेसू की फलियां कृतिमनाशक के काम के साथ-साथ अन्य बीमारियों तथा मनुष्य का बुढ़ापा भी दूर करती है। इसके पांचों अंगों- तना, जड़, फल, फूल और बीज से दवाएं बनाने की विधियां दी गई हैं। इस पेड़ से गोंद भी मिलता है जिसे ‘कमरकस’ कहा जाता है। इससे वीर्यवान बना जा सकता है। पलाश पुष्प पीसकर दूध में मिलाकर गर्भवती माताओं को पिलाने से बलवान संतान का जन्म होता है।
इसके फूल के रस में एंटी डायरिया , एंटी कैंसर एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते है । पत्तों के रस से कील , मुंहासे , अतिसार , खूनी बवासीर जैसे रोगों का भी उपचार किया जाता है । पलाश के दाने से तेल निकाला जाता | इसके दानों के पाउडर में नींबू का रस लगाकर लगाने से खुजली , एक्जिमा रोग दूर होते है । पलाश की जड़ अल्सर तथा लीवर की गड़बड़ी को भी ठीक करने तथा सांप काटने पर एंटीडोट दवा के रूप में भी उपयोग किया जाता है ।
पलाश के फूल के पानी से स्नान करने से लू नही लगती तथा गर्मी का एहसास नहीं होता हैं।इसकी जड़ो से रस्सी बनाई जाती है तथा नाव की दरारें भरी जाती है।
पलाश के वृक्ष लाक उत्पादन करने के लिए एक अच्छे संसाधन है, अगर ग्रामीण इलाकों में लाक उत्पादन की मशीन लगा दी जाये और लाक के उत्पादन की जानकारी लोगों की दी जाये तो यह आय का अच्छा स्त्रोत होगा। होली के मस्ती बिना रंगों के अधूरी है और रंग पहले फूलो व पत्तियों से ही प्राप्त किया जाता था, इनमें सबसे ऊपर आता है, पलाश के फूलों का रंग, अगर अच्छी गुणवत्ता का रंग तैयार किया जाये जो किसी के त्वचा को नुकसान न करे, तो यह लघु उद्योगों को बढ़ावा दे सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका फूल तोड़े जाने के काफी दिनों तक रखा जा सकता है।
क्यों समाप्त हो रहा है पलाश के वृक्षों का अस्तित्व
झारखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ही इन वृक्षों का अस्तित्व बचा हुआ है। लेकिन वन विभाग की उदासीनता के कारण इन वनो का क्षेत्रफल घट रहा है। संरक्षण नहीं होने के कारण यह खत्म होने की कगार पर पहुंच चुके है। पलाश के पेड़ो की अंधाधुन कटाई और बेचे जाने के कारण तथा दूसरा कारण वर्षा की कमी के कारण इसका अस्तित्व खतरे के कगार पर है।
पलाश के पेड़ पर्यावरण का संरक्षण के साथ – साथ व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी काफी लाभप्रद है परंतु जानकारी और अज्ञानता के अभाव में औषधीय गुणों से भरपूर पलाश के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं । धरती पर मानव के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार इस वृक्ष के औषधीय गुणों के बारे में लोगों को अवगत कराया जाए । औषधीय गुणों के भंडार इस वृक्ष के संरक्षण के लिये आवाम को जागरूक किया जाय ।
देवेन्द्र कुमार नयन ( Devendra Kumar Nayan )
लेखक