औलाद
मेरे आंखों के सपने
दिल के अरमान हो तुम
तुम से ही तो मैं हूं
मेरी पहचान हो तुम
मैं जमीन हूं अगर तो
तुम मेरे लहलहाते फसल हो
सच मानो तो मेरे लिए
सारा संसार हो तुम
अपने कांधे पर तुम्हें घुमाकर
ओ आनंद आता है
भर दिन की थकान
तेरी एक मुस्कुराहट से
मिनटों में समाप्त हो जाता है
तेरे दुखी होने पर
मेरे दिल पर पहाड़ टूट पड़ता हैं
खाना कितना भी स्वादिष्ट बना हों
सब बेकार लगता है
हर दिन में सोचता हूं
क्या खिलाऊं कहा पढ़ाऊं
क्या खरीदूं तेरे लिए
तू जानता नहीं तू जान है मेरे लिए
सुशील चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार