और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ!!
सत्य की राहों पे गिरती बिजलियों को
देखकर आती नई मधुमास गाओ!
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ!
पुण्य कर्मों का ये देखो फल यहां।
झूठ भारी पर रहा है सांच पर।
सत्य पंथों का पथिक होने का मतलब
ले चलो खुद को धधकते आंच पर।
मैं विकट वहशी सी अग्नि कुंड में
जल रहा हूं वो कहे पुंजवान गाओ!
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ!
द्वंद है विस्मय समेटे वक्ष में।
मौत से डरकर भला क्या सत्य छोडूं?
वन में चंदन है महकता वृंद अक्षक्ष्ण
है गलत क्या अंग अंग भुजंग तोडूं?
सर्प को कैसे पिलाऊँ दूध मैं
क्या सही है मृत्यु को सर पर चढ़ाओ?
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ!
मैं हूं “दिनकर” सा “निखर”हर काल में
बनके चंदर या “कलश”आ जाऊंगा।
हां कभी श्रीकृष्ण के उपदेश सा
कुरुक्षेत्र के कण कण में बसता जाऊंगा।
तुम मेरे इस पृष्ठ भूमि को भले।
जल के ऊपर छाप कह उपहास गाओ!
मौत नर्तन कर रही सर पर मेरे।
और तुम कहते हो मधुरिम गान गाओ!
©®दीपक झा “रुद्रा”