और तुम कहते हो कि तुम सुखी हो !
तुम केवल बाहर से हँसते हो,
दिखावटी..
अंदर से बेहद खोखले हो तुम,
घुटन, असंतुष्टि, पीड़ा, अपमान, अहम्, ईर्ष्या..
इन सबको कही गहरे में लपेटे हो तुम
और कहते हो कि तुम सुखी हो!
तुम्हारी रग रग का पसीना
हद से ज्यादा नमकीन है
क्योंकी इसमें तुम्हारे आंसू मिले हैं.
वही आंसू जिन्हें तुम सिर्फ अकेले में बहाते हो,
और दुनिया को कहते हो की
तुम सुखी हो,
तुम्हारा अकेलापन तुम्हे खाने को दौड़ता
है
हर हादसा तुम्हे पाने को दौड़ता
है
चक्रव्यूहों में फसे हो
एक के बाद एक ..
और कहते हो की तुम सुखी हो?
तुम्हारा बहिर्मन बार बार परास्त होता
है तुम्हारे अंतर्मन से
और तुम कहते हो की तुम सुखी हो?
– नीरज चौहान