और तराशो खुद को
कठिन घड़ी में उठने वाले, हर प्रश्नों का उत्तर कर दो।
और तराशो खुद को इतना, खुद से ही तुम बेहतर कर दो।।
काटो-छांटो, ठोको-पीटो, दो सुंदर आकार अभी।
इस जीवन का सुंदर सपना तुम कर लो साकार अभी।
कहीं मील का सफेद-पीला, कहीं नींव का पत्थर कर दो।।
और तराशो खुद को इतना, खुद से ही तुम बेहतर कर दो।।
चंदा की शीतलता मन में, तेज सूर्य सा हर पल दमके।
जल-थल-अंबर, तीन लोक में कर्तव्यों की खुशबू महके।
काश्मीर की झील, पहाड़ी, खुशबू वाला केसर कर दो।।
और तराशो खुद को इतना, खुद से ही तुम बेहतर कर दो।।
मातृभूमि के रक्षण हेतु, शीशकमल दो साँसे सारी।
जनमानस को सही दिशा दो, ऐसी हो सबकी तैयारी।
मात-पिता के साथ रहो तुम, जन्नत के जैसा घर कर दो।
और तराशो खुद को इतना, खुद से ही तुम बेहतर कर दो।।
संतोष बरमैया #जय